दुर्ग-भिलाई क्षेत्र की लुप्त होती ज्योतिष परंपराएं

 

दुर्ग-भिलाई क्षेत्र की लुप्त होती ज्योतिष परंपराएं

दुर्ग-भिलाई क्षेत्र की लुप्त होती ज्योतिष परंपराएं

छत्तीसगढ़ का दुर्ग-भिलाई क्षेत्र सिर्फ स्टील उद्योग और शहरी विकास के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध ज्योतिष परंपराओं के लिए भी जाना जाता रहा है। गाँवों में आज भी ऐसे बुज़ुर्ग मिल जाते हैं जो जन्मकुंडली बिना लिखे, सिर्फ नाम, समय और वातावरण देखकर भविष्य का संकेत देने का दावा करते हैं। परंतु आधुनिकता और तकनीक के तेज़ी से बढ़ते प्रभाव के बीच ये परंपराएँ अब धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं।


🌿 ग्राम्य ज्योतिष का लोकस्वरूप

दुर्ग-भिलाई के ग्रामीण अंचलों में ज्योतिष केवल ग्रह-नक्षत्रों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें लोकज्ञान, परंपरागत अनुभव, और मौखिक ज्ञान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गाँवों में "गणितिया पंडित", "पंचांग वाचक", और "अनुभवी भविष्यवक्ता" जैसी उपाधियाँ पाई जाती थीं। ये लोग पञ्च-पत्री (हाथ से बनाई जाती थी) में जन्म विवरण जोड़कर भविष्यवाणी करते थे।


🔮 कुछ लुप्त होती परंपराएं

  1. कागज़ रहित कुंडली वाचन
    गाँवों में कुछ बुजुर्ग ऐसे होते थे जो जन्म समय जानकर मानसिक गणना से कुंडली बनाते थे – बिना किसी कंप्यूटर, सॉफ़्टवेयर या चार्ट के। इसे "मन की कुंडली" कहा जाता था।

  2. सपनों की व्याख्या से भविष्यवाणी
    विशेष दिनों पर देखे गए सपनों की गाथा बताकर पंडित यह बताने का प्रयास करते थे कि कौन-सा ग्रह प्रभावी हो रहा है। विशेषकर ग्रहण या अमावस्या की रात के सपनों को महत्वपूर्ण माना जाता था।

  3. ग्रह दोष निवारण हेतु लोकपद्धति
    ग्रह शांत करने के लिए खेत की मेढ़ पर नींबू, मिट्टी के दीपक, तुलसी पत्ता और राई से युक्त विशेष विधि का प्रयोग किया जाता था। यह परंपरा अब दुर्लभ हो चुकी है।

  4. पशुओं से संकेत लेना (पशु लक्षण ज्योतिष)
    गाय का मूंह पूर्व की ओर होना, कौवे का खास समय पर बोलना या बिल्ली की हरकतों से जुड़ी भविष्यवाणियाँ आम थीं।


📉 परंपरा के विलुप्त होने के कारण

  • शहरीकरण और विज्ञान आधारित शिक्षा के कारण इन विधाओं को अब "अंधविश्वास" कहकर नकारा जाता है।

  • डिजिटल एप्स और ऑनलाइन कुंडली की सुविधा से पारंपरिक ज्ञान को पूछने वालों की संख्या घट गई है।

  • नई पीढ़ी इन विधियों को सीखने से झिझकती है, और गुरु-शिष्य परंपरा टूटती जा रही है।


🌟 क्या यह ज्ञान फिर जीवित हो सकता है?

ज़रूर। यदि स्थानीय विश्वविद्यालय, संस्कृति विभाग या उत्साही शोधकर्ता इन लुप्त होती विधाओं को दस्तावेज करें, तो यह अमूल्य परंपरा अगली पीढ़ियों के लिए संरक्षित हो सकती है।
गाँवों में जाकर स्थानीय पंडितों से बात करना, उनके अनुभव रिकॉर्ड करना, और लोक-ज्योतिष को एक सम्मानित शोध-विषय बनाना आज की आवश्यकता है।


📝 निष्कर्ष

दुर्ग-भिलाई क्षेत्र की ग्राम्य ज्योतिष परंपराएं हमारी सांस्कृतिक धरोहर का वह हिस्सा हैं, जिन्हें हम खोते जा रहे हैं। यदि हमने समय रहते इन्हें नहीं संजोया, तो भविष्य की पीढ़ियाँ इन रहस्यमयी और अद्भुत ज्ञान स्रोतों से वंचित रह जाएँगी।

lakshmi narayan

Lakshmi Narayan is a famous astrologer of Durg/Bhilai, he is the perfective of Shani Dev and solves the problems of the people with the power of his knowledge and sadhana. Astrology is a spiritual practice which is a science related to God and spirituality, astrology is incomplete without spiritual practice. Lakshmi Narayan solves the problems of astrology only based on 'Sadhana'.

Post a Comment

Previous Post Next Post