नीच भंग राजयोग का फल कब मिलता है

नीच भंग राजयोग का फल कब मिलता है

नीच भंग राजयोग का फल कब मिलता है

नीचभंग राजयोग उन जातकों की जन्म कुंडली में पाया जाता है, जो कठिनाइयों का सामना करते हुए भी सफलता प्राप्त करने की अद्वितीय क्षमता रखते हैं। ऐसे जातक अपने प्रयासों से किसी भी चुनौती को पार कर सकते हैं और अपने बलबूते पर एक महत्वपूर्ण स्थान बना लेते हैं। वे जिस भी क्षेत्र में कदम रखते हैं, वहां अपनी विशेष पहचान स्थापित कर लेते हैं। चाहे परिस्थितियाँ उनके अनुकूल हों या प्रतिकूल, इन जातकों के लिए सफलता की राह हमेशा खुली रहती है।

इस योग के निर्माण की प्रक्रिया पर विचार करते हुए, यह स्पष्ट होता है कि यह जातक की मेहनत, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास का परिणाम है। नीचभंग राजयोग का प्रभाव जातक को न केवल व्यक्तिगत विकास में मदद करता है, बल्कि समाज में भी उनकी पहचान को मजबूत बनाता है। इस प्रकार, यह योग उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है, जो अपने जीवन में उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं।

नीचभंग राजयोग की स्तिथि कब बनती है।

जब कोई नीच ग्रह किसी उच्च ग्रह के साथ दृष्टि या क्षेत्र संबंध स्थापित करता है, तो यह स्थिति नीच भंग राज योग का निर्माण करती है। नीच ग्रह का उच्च राशि के स्वामी के प्रभाव में होना, चाहे वह युति के माध्यम से हो या दृष्टि के माध्यम से, नीच भंग योग की स्थिति उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त, यदि दो नीच ग्रह एक-दूसरे को देखते हैं, तो यह भी नीच भंग योग का निर्माण करता है।

नीच राशि के स्वामी ग्रह के साथ होना या उसके प्रभाव में रहना भी नीच भंग योग की श्रेणी में आता है। जब चंद्रमा सूर्य के साथ केंद्र में होता है, तो नीच ग्रह का दोष समाप्त हो जाता है। जन्म कुंडली में योगकारक ग्रह और लग्नेश के साथ संबंध स्थापित होने पर नीच भंग राजयोग का निर्माण होता है।

यदि नीच ग्रह नवांश कुंडली में उच्च का होता है, तो यह नीच भंग राजयोग का निर्माण करता है। दो उच्च ग्रहों के बीच स्थित नीच ग्रह भी उच्च समान फल प्रदान करता है। इसके अलावा, यदि नीच ग्रह वक्री होता है, तो यह भी नीच भंग राजयोग का निर्माण करता है। जब नीच राशि में स्थित ग्रह उच्च ग्रह के साथ होता है, तो यह नीच भंग राजयोग का निर्माण करता है।

ग्रहों की परम नीच स्थिति

ग्रहों की नीच स्थिति को समझना ज्योतिष में महत्वपूर्ण है। सूर्य को तुला राशि के 10° अंश पर नीच माना जाता है, जो उसकी ऊर्जा और प्रभाव को कमजोर करता है।

इसी प्रकार, चन्द्रमा वृश्चिक राशि के 3° अंश पर नीच होता है, जिससे उसकी भावनात्मक स्थिति में अस्थिरता आ सकती है।

मंगल ग्रह कर्क राशि के 28° अंश पर नीच माना जाता है, जो उसके आक्रामक और साहसी स्वभाव को प्रभावित करता है।

बुध, जो कि मीश राशि के 15° अंश पर नीच है, संचार और बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना कर सकता है।

इसी तरह, गुरु मकर राशि के 5° अंश पर नीच होने के कारण उसके ज्ञान और विस्तार की क्षमता में कमी आ सकती है।

शुक्र कन्या राशि के 27° अंश पर नीच माना जाता है, जिससे प्रेम और सौंदर्य के मामलों में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

अंत में, शनि मेष राशि के 20° अंश पर नीच होता है, जो उसके अनुशासन और जिम्मेदारी के गुणों को प्रभावित करता है।

इन ग्रहों की नीच स्थिति उनके प्रभाव को कम कर देती है और विभिन्न जीवन क्षेत्रों में चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं।

ग्रहों की परम उच्च स्थिति

ग्रहों की उच्च स्थिति को उनके विशेष अंशों के अनुसार परिभाषित किया जाता है। सूर्य को मेष राशि के 10° अंश पर उच्च माना जाता है, जो इसे एक महत्वपूर्ण स्थिति प्रदान करता है।

इसी प्रकार, चन्द्रमा वृषभ राशि के 3° अंश पर उच्च होता है, जो उसकी स्थिरता और भौतिकता को दर्शाता है।

मंगल ग्रह मकर राशि के 28° अंश पर उच्च स्थिति में होता है, जो उसे शक्ति और साहस का प्रतीक बनाता है।

बुध को कन्या राशि के 15° अंश पर उच्च माना जाता है, जो बुद्धिमत्ता और संचार के क्षेत्र में उसकी प्रगति को दर्शाता है।

गुरु ग्रह कर्क राशि के 5° अंश पर उच्च होता है, जो ज्ञान और विस्तार का संकेत है।

शुक्र ग्रह मीन राशि के 27° अंश पर उच्च स्थिति में होता है, जो प्रेम और सौंदर्य के क्षेत्र में उसकी प्रभावशीलता को दर्शाता है।

अंत में, शनि तुला राशि के 20° अंश पर उच्च माना जाता है, जो न्याय और संतुलन के प्रतीक के रूप में उसकी भूमिका को स्पष्ट करता है। इन ग्रहों की उच्च स्थिति उनके प्रभाव और कार्यों को महत्वपूर्ण बनाती है।

राहु और केतु

छाया ग्रह होने के नाते, राहु और केतु की स्थिति को लेकर कई ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे इनकी उच्चता और नीचता के विषय में कोई निश्चितता नहीं मिलती।



lakshmi narayan

Lakshmi Narayan is a famous astrologer of Durg/Bhilai, he is the perfective of Shani Dev and solves the problems of the people with the power of his knowledge and sadhana. Astrology is a spiritual practice which is a science related to God and spirituality, astrology is incomplete without spiritual practice. Lakshmi Narayan solves the problems of astrology only based on 'Sadhana'.

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